सोमवार, 22 मार्च 2010

तुलसी के औषधीय प्रयोग----





लेटिन नाम- ओसिमम सैन्टकम
१ - तुलसी के पांच पत्ते व पांच काली मिर्च पीस लें; इसे पानी में मिलाकर प्रात: खाली पेट २१ दिन तक पीयें यह मस्तिष्क की गर्मी को दूर करने की शक्‍ति देता है !

२-तुलसी के पांच पत्ते रोज पानी के साथ निगलने से बल; तेज व स्मरण शक्‍ति बढती है !

३-तुलसी के पत्तो को पीस कर नमक मिलाकर उसका रस नाक में डालने से बेहोशी में लाभ होता है !

४-बुखार खांसी व श्वास सम्बन्धी रोगों में तुलसी की पत्तियो का रस ३ ग्राम;अदरक का रस ३ ग्राम व शहद ५ ग्राम मिलाकर दिन में तीनों टाइम चाटें लाभ होगा !

५-तुलसी का रस नाक में टपकाने से पुराना सिर दर्द व सिर के अन्य रोग दूर होते हैं!

६-तुलसी के पत्तों का रस नित्य चेहरे पर लगाने से चेहरे के दाग धब्बे व झाइयां दूर होते हैं !

७-काली मिर्च व तुलसी के पत्तों की गोलियां बनाकर दांत के बीच में रखने से दांत में रखने से दांत दर्द दूर होता है !

८-सात पत्ते तुलसी के व पांच लोंग कूटकर एक गिलास पानी में पकायें,जब आधा शेष रह जाये तब थोडा सा सैधा नमक डालाकर गरम-गरम पी जायें !यह काढा पीकर कुछ समय के लिये वस्त्र ओढ्कर पसीना ले लें इससे बुखार तुरन्त उतर जायेगा तथा सर्दी जुकाम व खांसी भी ठीक हो जाती है! इस काढॆ को दिन में दो या तीन बार ले सकते हैं !

९-भोजन के बाद तुलसी के सात पत्ते पानी में पीस कर पीने से अजीर्ण (भोजन न पचना)दूर होता है! नित्य तुलसी के सात पत्ते लेने से डाइजेसन सिस्टम ठीक रहता है !

१०- पांच लोंग भून कर तुलसी के पत्तों के साथ चबाने से सब तरह की खांसी में लाभ होता है !केवल तुलसी का काढा पीने से भी खांसी ठीक होती है!

११- तुलसी की सूखी पत्तियां व मिश्री समान मात्रा में पीस लें, लगभग चार-चार ग्राम दिन में तीन बार लें !खांसी व फेफडों की घरघराहट दूर हो जायेगी !

१२-तीन ग्राम तुलसी का रस व ६ग्राम मिश्री तथा ३काली मिर्च मिलाकर कुछ दिन लगातर लेने से छाती की जकडन ,पुराना बुखार व खांसी में लाभ होता है !

१३-छोटे बच्चों को खंसी व जुकाम हो जाने पर तुलसी के पत्तो का रस शहद में मिलाकर दिन में तीन या चार बार चटायें !

१४-तुलसी के पत्तों का रस १२ ग्राम व शहद ६ ग्राम मिलाकर पीने से हिचकी बन्द हो जाती है !

१५- तुलसी की पत्तों को शक्कर के साथ मिलाकर पीने से पेचिश दूर होती है !

मंगलवार, 2 मार्च 2010

महामॄत्युंजय मंत्र

ओम त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं, उर्वारुकमिव बन्ध्नानमॄत्योर्मुक्षीय मामॄतात !

इस एक महामॄत्युंजय मंत्र में हमारे पूरे शरीर को आरोग्य देने चमत्करिक अक्षर छुपे हुये हैं !महामृत्युंजय मंत्र मे ३३अक्षर हैं, जो महर्षि वसिष्ट के अनुसार ३३ दिव्य शक्तियों के समान हैं ! वैज्ञानिक शोध के अनुसार पाया गया है कि इसके मंत्र जाप में रोग निवारण की अपार शक्ति निहित है! मंत्र जप साधना एक ऐसी पद्यति है, जिसके कोई साइड इफैक्ट नहीं हैं !यह योग के क्षेत्र में सबसे सरल और प्रभावपूर्ण साधना है!

महामृत्युंजय मंत्र की संरचना में विभिन्न शक्ति बीजों को पिरोया गया है, इसके मंत्र जप में जिव्हा के साथ -साथ कंठ, तालु, , दांत आदि मुंह के सभी अंग सहायक होते हैं! महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करने से मुंह के जिन-जिन भागों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों के नाडी तन्तु शरीर के विभिन्न भागों में फैल जाते हैं! इस फैलाव क्षेत्र में हमारे शरीर में फैली अनेक ग्रंथियां होती हैं, जिन पर उच्चारण का दबाब पडता है ,जिससे शरीर के आठों सिस्टम बैलेंस हो जाते हैं!

हमारे शरीर में स्थित शक्तियों का जाग्रत व सबल रहना ही जीवन है, तथा उनका निर्बल व सुप्त रहना ही मृत्यु है ! महामृत्युंजय मंत्र के जाप से मंत्र में आये हुये वर्ण शरीर में स्थित विभिन्न शक्तियों को जाग्रत करते हैं ! अत: मंत्र जाप से जाग्रत होकर विभिन्न शक्तियां तन व मन को सबल बनाती हैं !

एकाग्रता, दृढ विश्वास व दिव्य पवित्र भाव से की गयी जप साधना सदैव लाभकारी होती है !

स्वप्न(सपना)

हम स्वप्न देखते हैं;परन्तु उनमें छुपे अर्थो को हम खोल नही पाते यदि यह समझ में आ जाये तो स्वप्नो का संसार और भी अद्भुत हो जायेगा ! स्वप्न संसार बडा ही विचित्र व रहस्यमय विजान है;यह एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसे जितना सुलझाते हैं उलझती ही चली जाती है !आये दिन स्वप्न का मर्म समझ में आ जाने पर कुछ विशिष्ट साधनाओं द्वारा अशुभ स्वप्नफल का निराकरण किया जा सकता है !वस्तुत: यह हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है; परन्तु इससे हम अनजान हैं! ऋषियो ने स्वप्न पर व्यापक अनुसंधान किया है जिसके अनुसार स्वप्न तीन प्रकार के होते हैं-
१-दैनिक कार्यो की सूचना देने वाले;
२-शुभ फलदायी स्वप्न,
३-अशुभ फलदायी स्वप्न,
रात्रि के प्रथम प्रहर अर्थात नींद लगने पर तुरन्त स्वप्न देख्नने पर उसकी फल अवधि एक वर्ष होती है!
दूसरे प्रहर में देखा फल ६ महीने में फलित होता है!
उषाकाल में देखा स्वप्न तुरन्त फल देने वाला होता है!
शुभ एवं अशुभ स्वप्नों के कुछ फल जो आचार्यों द्वारा बताये गये हैं वह निम्न हैं---

शुभ स्वप्न--

राज गुरु,ब्राह्मण व देव दर्शन,आभूषण युक्त स्त्री या सफेद वस्त्र युक्त स्त्री देखना !
श्वेत कमल,तालब, नदी,सफेद वस्तु (छाछ,रुइ, अस्थि,व नमक को छोडकर!
रक्त व पुष्प दर्शन, सफेद सर्प का काटना,गाय का ताजा दूध पीना, वीणा बजाना,
स्व मरण, स्व शरीर का छेदन, विजय प्राप्त होना,पान व कपूर का मिलना,
पर्वत पर चढना, समुंद्र में व नदी में तैरना,देव पूजा ,देव ध्वनि सुनना !
सूर्य,चन्द्र व इन्द्र-धनुष दर्शन आदि !

अशुभ स्वप्न----
लाल वस्त्र पहनना, नाच गाने से युक्त विवाहोत्सव देखना !
अपने शरीर में तेल मलना,सूखी नदी व सूखा पेड देखना, पित्र कार्य करना !
गधे मे बैठना,नदी मै डूबना या बहना,दीपक टिमटिमाता दिखायी देना,माला या हार टूटना !
पर्वत महल या ध्वजा गिरना, कीचड में फंसना,हाथ से दर्पण का गिरकर टूटना आदि !

स्वप्न फल
१.अनाज भरना ---------------------------------------------------------- धन लाभ
२.अंगूठी पाना ----------------------------------------------------------- परेशानी
३.आग देखना-------------------------------------------------------------- धन हानि
४.इमारत बनाना----------------------------------------------------------- लाभ
५.ऊंचाई से गिरना----------------------------------------------------------- अपमान
६.कुत्ते का काटना------------------------------------------------------------ शत्रु वृध्दि
७.गाय देख्नना----------------------------------------------------------------- परेशानी
८.घोडा देख्नना --------------------------------------------------------------- स्त्री लाभ
९.चित्र देख्नना ---------------------------------------------------------------- राजसम्मान
१०.चीखें मारना -------------------------------------------------------------- संकट
११.बन्दर देखना----------------------------------------------------------------- धन लाभ
१२.बादल देखना --------------------------------------------------------------- लाभ
१३.बारात देखना---------------------------------------------------------------- रोग
१४.बारिश देखना----------------------------------------------------------------- चिन्ता
१५.बिल्ली देखना --------------------------------------------------------------- तरक्की पाना
१६.आभूषण की चोरी ----------------------------------------------------------- सफ़र
१७.मन्दिर में जाना ----------------------------------------------------------- कार्य पूरा होना
१८.मदिरा पीना -------------------------------------------------------------- कष्ट पाना
१९.चांदी देखना -------------------------------------------------------------- धन पाना
२०.जहाज देखना --------------------------------------------------------------- राज्य लाभ
२१.जहाज पर चढना ------------------------------------------------------------ तबादला
२२.तख्त देखना --------------------------------------------------------------- उन्नति
२३.झाडू देखना ----------------------------------------------------------------- खर्च
२४.तख्त पर बैठना -------------------------------------------------------------- आदर पाना
२५.तालाब स्नान ----------------------------------------------------------------- इज्जत पाना
२६.दही खाना --------------------------------------------------------------------- यात्रा
२७.दूध पीना ---------------------------------------------------------------------खुशी पाना
२८.देव प्रतिमा देखना ---------------------------------------------------------------धन लाभ
२९.नदी स्नान ------------------------------------------------------------------- रोग दूर होना
३०.ऊंचाई पर चढना --------------------------------------------------------------- शुभ लाभ
३१.हरे वॄक्ष देखना ----------------------------------------------------------------- शुभ लाभ
३२.वॄक्ष पर चढना ----------------------------------------------------------------- सफलता पाना
३३.सोना पाना ---------------------------------------------------------------------- परेशानी
३४.हाथी पर सवारी ----------------------------------------------------------------- लाभ
३५.रोटी खाना ------------------------------------------------------------------- सुसमाचार
३६.फल वाले वृक्ष देखना------------------------------------------------------------ शुभ
३७.पानी में डूबना ----------------------------------------------------------------- कष्ट पाना
३८.हाथी पर सवारी --------------------------------------------------------------- लाभ होना
३९.मॄत्यु होना ------------------------------------------------------------------- दीर्घायु होना

उपरोक्त स्वप्न व उनके अशुभ फल सम्बन्धी निवारण भी हमारे पोराणिक दर्शन शास्त्रों मे उपलब्ध है ! माता-पिता,व गुरु,ब्राह्मणो का पूजन करने से अशुभ स्वप्नो का निराकरण होता है! सूर्योदय के समय गायत्री मन्त्र का जाप करने से व अपने ईष्ट का ध्यान करने से सभी अशुभ स्वप्नों के फल दूर होते हैं! फिर सबसे बडा निराकरण तो नि:स्वार्थभाव से सत्कर्म करते जाना है! सभी परेशानियां स्वयं ही दूर हो जायेंगी !